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वर्तमान में आचरणीय धर्म का वास्तविक स्वरूप

डॉ0 वन्दना, असि० प्रोफेसर (संस्कृत), फ०अ०अ० राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महमूदाबाद, सीतापुर.   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i5005   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i5005
Published Date: 05-05-2025 Issue: Vol. 2 No. 5 (2025): May 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

आरंभिक अनुच्छेद: हमारे राष्ट्र भारत की सर्वत्र प्रतिष्ठा है। इसकी प्रतिष्ठा के दो हेतु हैं- ‘‘भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृ तिश्च।’’ वस्तुतः संस्कृत भाषा एवं भारतीय संस्कृति ही ऐसे दो हेतु हैं जो अपने दिव्य आलोक से समस्त जगत् को प्रकाशित करते हैं। संस्कृति नितान्त मानवीय और सार्वभौम है। हम कह सकते हैं कि मानवीय गरिमा के अनुरूप उच्चस्तरीय श्रद्धा अथवा सद्भावना ही संस्कृति है। संसार के समस्त विद्वानों ने यह एक स्वर से स्वीकार किया है कि भारतीय संस्कृति ही सर्वाधिक प्राचीन है। यह संस्कृति प्राचीनता के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठता को भी धारण करती है। इसकी श्रेष्ठता का हेतु आध्यात्मिक प्रधानता है। अधिकांश संस्कृतियाँ केवल आधिभौतिक विषयों के साथ-साथ प्रधानतया आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता का संबल लेकर नित्य निरन्तर प्रवहमान हो रही हैं। यहाँ पर यह प्रश्न स्वाभाविक है कि भारतीय संस्कृति की मूल विशेषता उसकी धार्मिक भावना है, तो यहाँ धर्म का क्या स्वरूप है? धर्म से क्या आशय है?


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