एकात्म मानव दर्शन- सामयिक विकास का भारतीय मॉडल एक विष्लेषण


Published Date: 13-03-2025 Issue: Vol. 2 No. 3 (2025): March 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download
सारांशः एकात्म मानव दर्शन, जिसे पं. दीनदयाल उपाध्याय ने प्रस्तुत किया, भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह दर्शन मानव के आध्यात्मिक, नैतिक, और भौतिक विकास को एकीकृत करता है, जिससे समावेशी और संतुलित विकास संभव हो सके। एकात्म मानव दर्शन भौतिक समृद्धि के साथ-साथ आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति को भी महत्वपूर्ण मानता है। यह मानता है कि केवल आर्थिक समृद्धि पर्याप्त नहीं हैय आत्म-पूर्ति और सांस्कृतिक निरंतरता भी आवश्यक हैं। यह दर्शन व्यक्त करता है कि व्यक्ति और समाज अविभाज्य हैं। व्यक्ति अपनी पूर्ण क्षमता समाज के साथ संबंध के माध्यम से ही प्राप्त कर सकता है, इसलिए दोनों का विकास समानांतर होना चाहिए। एकात्मक मानव दर्शन स्थानीय आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। यह स्वदेशी संसाधनों और उद्योगों के उपयोग पर जोर देता है, जिससे विदेशी निर्भरता कम हो और घरेलू अर्थव्यवस्था सशक्त हो। यह दर्शन शासन के लिए नैतिकता और ध् ार्म के पालन की आवश्यकता पर बल देता है। नीतियां सभी नागरिकों के कल्याण, न्याय, समानता और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाई जानी चाहिए। एकात्म मानव दर्शन, भारत की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करते हुए आधुनिकता को अपनाने का मार्ग प्रस्तुत करता है। यह पूंजीवाद और समाजवाद दोनों के विकल्प के रूप में उभरता है, जो भारतीय संदर्भ में सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान प्रदान करता है। इस शोध पत्र के माध्यम से वर्तमान भारत में स्वामी दीनदयाल उपाध्याय के एकात्मक दर्शन के चिंतन के परिप्रेक्ष्य में विकास की विभिन्न दिशाओं का विश्लेषण प्रस्तुत कर भारतीय मॉडल कि मानवीय उपादेयता का परीक्षण किया जाएगा।
मुख्य शब्दः एकात्म मानववाद, राष्ट्रवाद, स्वदेशी, चिति और विराट, धर्म, संस्कृति और राजनीति।.