औपनिवेशिक काल में शाहाबाद क्षेत्र में शिक्षा का विकास स्तर


Published Date: 08-05-2025 Issue: Vol. 2 No. 5 (2025): May 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download
सारांश: औपनिवेशिक भारत में शिक्षा प्रणाली केवल ज्ञान के प्रसार का माध्यम नहीं थी, बल्कि वह एक सशक्त औजार थी, जिसके माध्यम से ब्रिटिश शासन ने सामाजिक संरचना, वर्गीय समीकरण और राजनीतिक चेतना को प्रभावित किया। बिहार के शाहाबाद क्षेत्र जिसमें वर्तमान भोजपुर, बक्सर, रोहतास एवं कैमूर जिले सम्मिलित हैं- में शिक्षा का विकास इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही पाठशालाएँ, टोल, मदरसे और गुरुकुल जैसी संस्थाएँ सक्रिय थीं, जहाँ धार्मिक, नैतिक और परंपरागत ज्ञान का हस्तांतरण होता था। किंतु औपनिवेशिक शासन के आगमन के बाद इस व्यवस्था में गहरा परिवर्तन आया। ब्रिटिश सरकार की शिक्षा संबंधी नीतियों, जैसे 1835 की मैकोले नीति, 1854 का वुड्स डिस्पैच और 1882 का हंटर आयोग, ने अंग्रेजी भाषा और पश्चिमी विज्ञान पर बल दिया। शाहाबाद क्षेत्र में सरकारी और मिशनरी स्कूलों की स्थापना हुई, परंतु इनकी पहुँच मुख्यतः सवर्ण और संपन्न वर्गों तक सीमित रही। पिछड़े, दलित, मुस्लिम और महिला वर्ग इस नवाचार से वंचित रहे। इससे स्पष्ट होता है कि औपनिवेशिक शिक्षा नीति सामाजिक समावेशन के बजाय वर्गीय और जातीय असमानता को पोषित करती रही। हालाँकि इस प्रक्रिया में एक सीमित शिक्षित वर्ग का उदय हुआ, जिसने प्रशासनिक सेवा, न्यायिक तंत्र और पत्रकारिता में प्रवेश पाया, किंतु यह वर्ग भी ब्रिटिश हितों के अनुकूल प्रशिक्षित था। शिक्षा के माध्यम से भारतीय समाज के बौद्धिक ढाँचे में परिवर्तन अवश्य आया, लेकिन यह परिवर्तन व्यापक, समावेशी या स्वदेशी नहीं कहा जा सकता। इस शोध पत्र में शाहाबाद क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था के ऐतिहासिक विकास का समालोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है, जो यह दर्शाता है कि किस प्रकार शिक्षा एक सामाजिक नियंत्रक शक्ति बनकर औपनिवेशिक शासन को मजबूत करने का साधन बनी।
मुख्य-शब्द: औपनिवेशिक शिक्षा, शाहाबाद, पारंपरिक पाठशालाएँ, सामाजिक असमानता, मिशनरी स्कूल, शिक्षा नीति, ब्रिटिश शासन।.