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वर्तमान में नक्सलवाद की स्थिति व निवारण के उपाय

डॉ0 सचिन कुमार,पी.एच.डी, इतिहास विभाग, मगध विश्वविद्यालय, बोध गया.   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i5007   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i5007
Published Date: 06-05-2025 Issue: Vol. 2 No. 5 (2025): May 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

सारांश: भारत में नक्सलवाद एक लम्बे समय से आंतरिक सुरक्षा की प्रमुख चुनौती बना हुआ है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उपेक्षा के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह के रूप में विकसित हुआ। वर्तमान में यह आंदोलन मुख्यतः झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में सक्रिय है, जहाँ आदिवासी और वंचित समुदायों को सामाजिक-आर्थिक सुविधाओं से वंचित किया गया है। हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा सुरक्षा अभियानों में तेजी आई है, लेकिन नक्सलवाद की जड़ें केवल सैन्य दृष्टिकोण से समाप्त नहीं की जा सकतीं। नक्सलवाद की स्थिति को समझने के लिए उसके ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक पक्षों का सम्यक विश्लेषण आवश्यक है। कई बार यह देखा गया है कि सरकार और प्रशासन की योजनाएँ इन क्षेत्रों में ठीक से लागू नहीं होतीं, जिससे लोगों का असंतोष और अलगाव बढ़ता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि सुधार और रोजगार की कमी नक्सली विचारधारा को पनपने का अवसर देती है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन ‘समाधान’, ‘ग्रीन हंट’ जैसे अभियानों ने कुछ हद तक नियंत्रण किया है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए केवल सुरक्षा नहीं, बल्कि पुनर्वास और समावेशी विकास अनिवार्य है। नक्सलवाद के निवारण के लिए बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें शिक्षा और रोजगार के अवसरों का विस्तार, आदिवासी संस्कृति का संरक्षण, पारदर्शी शासन, पुलिस सुधार, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इसके साथ ही संवाद और विश्वास निर्माण की प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह जरूरी है कि सरकार संघर्ष की भाषा को छोड़कर संवेदना की भाषा अपनाए। अंततः, नक्सलवाद को केवल सुरक्षा समस्या के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय की अभिव्यक्ति के रूप में देखकर, उसके मूल कारणों को दूर करना ही स्थायी समाधान की ओर पहला कदम होगा।

मुख्य शब्द: नक्सलवाद, उग्रवाद, आदिवासी, विकास, सुरक्षा नीति, सशस्त्र संघर्ष, समाधान, सामाजिक न्याय।


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