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पीर मुहम्मद मूनिस- एक गुमनाम पत्रकार

डॉ0 संजय कुमार सहनी, असिस्टेंट प्रो., इतिहास विभाग, सबडिविजनल गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज, बेनीपुर, दरभंगा.   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i5001   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i5001
Published Date: 03-05-2025 Issue: Vol. 2 No. 5 (2025): May 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

आरंभिक अनुच्छेद: विश्व स्तर पर सत्याग्रह का प्रयोग कर अपनी छाप छोड़ने वाले महात्मा गाँधी राजकुमार शुक्ल के द्वारा जिस पत्र के बुलावे पर चंपारण में, बिहार की धरती पर किसानो की समस्या से दो-चार होने के लिए आए थे। उस पत्र को लिखने वाले चंपारण के साहसी, निडर, स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रतिभाशाली शिक्षक कोई और नहीं बल्कि पीर मुहम्मद मूनिस थे। सही मायनों में मूनिस को इतिहास में जो जगह मिलनी चाहिए, वास्तव में उसे मिला नहीं, जबकि जंग-ए-आजादी की लड़ाई में अपना जीवन दांव पर लगा देने वाले पीर मुहम्मद मूनिस देश के सच्चे सिपाही थे। जी हां, एक ऐसा नाम जो अधिकांशतः गुमनामी में रहा और उनके कार्यो को इतनी प्रमुखता नहीं दी गई जिनके वे वास्तविक उत्तराधिकारी थे। चंपारण सत्याग्रह की कोई भी चर्चा बेतिया के साहसी, अभिमानी पत्रकार पीर मुहम्मद मूनिस के बिना पूरी हो ही नहीं सकती। इनका जन्म 1894 ई0 में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने भारत में हिन्दु मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए चंपारण के किसानों की समस्या को उजागर करना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उसकी पत्रकारिता का सौंदर्य शास्त्र उस समय एक सामाजिक आंदोलन का वाहक बन गया। गुलामी के युग में जन्मे पीर मुहम्मद मूनिस ने इन्कलाब का रास्ता चुना और पूरे दृढ़ विश्वास के साथ अपनी लेखनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी।


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