भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरुकुल परंपरा की प्रासंगिकता और वर्तमान शिक्षा में इसका पुनरुत्थान


Published Date: 05-03-2025 Issue: Vol. 2 No. 3 (2025): March 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download
सारांशः भारतीय शिक्षा प्रणाली का इतिहास अत्यंत प्राचीन और समृद्ध रहा है। इसमें गुरुकुल परंपरा विशेष रूप से उल्लेखनीय रही है, जिसने शिक्षा को केवल ज्ञान प्राप्ति का साधन नहीं, बल्कि जीवन मूल्य और आचार-विचार पर आधारित एक समग्र जीवन पद्धति के रूप में विकसित किया। गुरुकुल प्रणाली में शिक्षक और शिष्य के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित होते थे, जहां व्यक्तिगत विकास, नैतिकता, अनुशासन और जीवनोपयोगी शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती थी। आधुनिक समय में जब वैश्विक शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों की गिरावट, शिक्षा में व्यावसायीकरण और व्यक्तित्व विकास की कमी देखने को मिलती है, तब गुरुकुल परंपरा की प्रासंगिकता पुनः उभर कर सामने आती है। आज की शिक्षा प्रणाली में केवल औपचारिक ज्ञान और परीक्षा केंद्रित शिक्षा दी जा रही है, जो छात्र के समग्र व्यक्तित्व निर्माण में अपेक्षित भूमिका नहीं निभा पा रही है। इसके विपरीत गुरुकुल परंपरा में जीवन कौशल, आध्यात्मिक विकास, प्रकृति से सामंजस्य और नैतिक शिक्षा को विशेष स्थान दिया जाता था। इस संदर्भ में वर्तमान शिक्षा में गुरुकुल परंपरा के मूल्यों का पुनरुत्थान आवश्यक प्रतीत होता है। भारत सरकार और विभिन्न निजी संस्थान आज वैदिक गुरुकुल, वेद पाठशालाओं और आधुनिक गुरुकुल विद्यालयों की स्थापना के माध्यम से इस परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। शिक्षा में आचार्य-शिष्य परंपरा, नैतिक शिक्षा, योग और ध्यान जैसी विधाओं का समावेश करके विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास को संतुलित किया जा सकता है। गुरुकुल प्रणाली का पुनरुत्थान नई शिक्षा नीति 2020 में भी दिखाई देता है, जिसमें भारतीय संस्कृति, जीवन कौशल और नैतिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की बात कही गई है। यह प्रणाली वर्तमान में एक संतुलित, मूल्यनिष्ठ और व्यवहारिक शिक्षा व्यवस्था के रूप में आधुनिक शिक्षा प्रणाली का पूरक बन सकती है। अतः गुरुकुल परंपरा की पुनर्स्थापना से शिक्षा को पुनः मानवता, समाज और संस्कृति के अनुरूप बनाया जा सकता है।
मुख्य शब्दःगुरुकुल परंपरा, भारतीय शिक्षा प्रणाली, नैतिक शिक्षा, समग्र विकास,, योग और ध्यान, संस्कृति, शिष्य-आचार्य संबंध.