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फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मैला आँचल‘ में लोक चेतना

डॉ0 सचेन्द्र कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, फुन्दी सिंह लौना राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जालौन.   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i6003   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i6003
Published Date: 02-06-2025 Issue: Vol. 2 No. 6 (2025): June 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

सारांश: फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास मैला आँचल हिंदी साहित्य में आंचलिकता और लोक जीवन के जीवंत चित्रण के लिए जाना जाता है। यह उपन्यास न केवल स्वतंत्रता-पूर्व भारत के ग्रामीण परिवेश को दर्शाता है, बल्कि उसमें व्याप्त लोक चेतना, संघर्षशीलता और सामाजिक मूल्यबोध को भी मुखर रूप से प्रस्तुत करता है। ‘मैला आँचल‘ में ग्रामीण जीवन की विविध परतें कृ आर्थिक शोषण, अशिक्षा, अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव और स्त्री-वंचना को लेकर जो लोकचेतना निर्मित होती है, वह पाठक को एक ओर यथार्थ के करीब ले जाती है तो दूसरी ओर सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित करती है। उपन्यास का प्रमुख पात्र डॉक्टर प्रशांत जहाँ आधुनिक शिक्षा और जागरूकता का प्रतीक है, वहीं अन्य ग्रामीण पात्र उस लोकसंस्कार और परंपरा के वाहक हैं, जो धीरे-धीरे जागृति की ओर उन्मुख हो रहे हैं। लेखक ने जिस बारीकी से भाषा, बोली, लोकगीत, कहावतें, मान्यताएं और रीति-रिवाजों का चित्रण किया है, वह उपन्यास को केवल साहित्यिक नहीं बल्कि सांस्कृ तिक दस्तावेज़ बना देता है। रेणु की लेखनी में लोक चेतना का स्वर केवल सामाजिक आलोचना तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह जन-संघर्ष, किसान आंदोलन, स्वाधीनता संग्राम और जन-स्वास्थ्य जैसे गंभीर मुद्दों से भी जुड़ता है। यही कारण है कि ‘मैला आँचल‘ में प्रस्तुत लोक चेतना, केवल भावुकता नहीं बल्कि यथार्थपरक समझ और बदलाव की दिशा में एक कदम है। यह शोध-पत्र उपन्यास में निहित लोक चेतना के विभिन्न आयामों का विश्लेषण करता है- जैसे ग्रामीण सामाजिक संरचना, लोक भाषा की भूमिका, लोक सांस्कृतिक चेतना, तथा राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया। इसके माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि ‘मैला आँचल’ केवल एक कथा नहीं, बल्कि भारत के ग्रामीण समाज की सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज़ है, जिसमें जन-संवेदना और जन-शक्ति की स्पष्ट अभिव्यक्ति मिलती है।

मुख्य-शब्द: फणीश्वरनाथ रेणु, मैला आँचल, लोक चेतना, आंचलिकता, ग्रामीण जीवन, सामाजिक यथार्थ, हिंदी उपन्यास, जनसंघर्ष, सांस्कृतिक बोध।


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