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महिला कथाकार और उनकी सामासिक संस्कृति

डॉ. पूनम चालिया, सहायक प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, माता सुंदरी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय.   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i4004   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i4004
Published Date: 08-04-2025 Issue: Vol. 2 No. 4 (2025): April 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

सारांश: हिंदी कथा साहित्य में स्त्री कथाकारों की भूमिका और योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। प्रारंभिक दौर से लेकर वर्तमान समय तक स्त्री लेखन ने सामाजिक यथार्थ को अपनी विशिष्ट दृष्टि से देखा और प्रस्तुत किया है। स्त्रियाँ न केवल अपने अस्तित्व की पहचान के लिए संघर्ष करती रहीं, बल्कि उन्होंने साहित्य के माध्यम से सामाजिक विडंबनाओं, स्त्री पीड़ा, अकेलेपन और सांस्कृतिक जटिलताओं को स्वर दिया। बंग महिला की कहानी ‘दुलाईवाली’ को हिंदी कथा साहित्य में स्त्री विमर्श की नींव के रूप में स्वीकारा जाता है, जिसमें स्त्री के अकेलेपन और सामाजिक उपेक्षा को मार्मिकता से उभारा गया है। यह कथा स्त्री की उस चुप पीड़ा की ओर संकेत करती है जिसे समाज पहचान तो लेता है, पर सहारा नहीं देता। हिंदी कथा साहित्य में स्त्री कथाकारों ने सामासिक संस्कृति के भीतर अपने अनुभवों और चिंताओं को स्थान देते हुए, स्त्री चेतना और आत्माभिव्यक्ति की सशक्त धारा प्रवाहित की है।

कीवर्ड्स:हिंदी कथा साहित्य, स्त्री लेखन, स्त्री विमर्श, दुलाईवाली, बंग महिला, स्त्री चेतना, अकेलापन, सामाजिक यथार्थ, स्त्री पीड़ा, सांस्कृतिक दृष्टि, सामासिक संस्कृति।


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