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बीसवीं सदी के कहानी आन्दोलन

डॉ0 अर्चना, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, सुकरौली, कुशीनगर.   DOI: 10.70650/rvimj.2025v2i40012   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2025v2i40012
Published Date: 16-04-2025 Issue: Vol. 2 No. 4 (2025): April 2025 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

आरंभिक अनुच्छेद: साहित्य समाज का दर्पण है। अतः समाज में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव साहित्य पर स्वाभाविक रूप से पड़ता है। लेखक समाज से ही प्रेरणा पाता है। जागरूक साहित्यकार समाज में होने वाली हलचलो और गतिविधियों पर न केवल पैनी निगाह रखता है, बल्कि उन्हें अपनी रचनाओं में किसी न किसी रूप में अभिव्यक्त भी करता है। इससे साहित्य में नयी चेतना का प्रसार होता है। काव्य में सृजनाएँ तो 1000 ई. से ही हिंदी साहित्य में शुरू हो जाती हैं, लेकिन कहानी कला के पूर्ण विकास (खड़ी बोली में) में 900 वर्षों का समय लग जाता है। कहानी के माध्यम से मनुष्य ने अपने अनुभवों को अभिव्यक्ति दी और समाज के साथ आत्मीयता स्थापित की।


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