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कबीर के दर्शन पर प्रारंभिक सूफी विचारधारा का प्रभाव

अवनीश कुमार, शोध छात्र, भगवंत विश्वविद्यालय, अजमेर, राजस्थान. डॉ0 दिनेश माण्डोत, शोध निर्देशक, भगवंत विश्वविद्यालय, अजमेर, राजस्थान   DOI: 10.70650/rvimj.2024v1i5008   DOI URL: https://doi.org/10.70650/rvimj.2024v1i5008
Published Date: 12-12-2024 Issue: Vol. 1 No. 5 (2024): December 2024 Published Paper PDF: Download E-Certificate: Download

सारांश: कबीर के दर्शन पर प्रारंभिक सूफी विचारधारा का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। भारतीय मध्यकालीन संत परंपरा के प्रमुख स्तंभ कबीर ने अपने विचारों में हिंदू और इस्लामिक दोनों परंपराओं का समन्वय किया। सूफी विचारधारा से प्रभावित होकर, कबीर ने एकेश्वरवाद को अपनाया और बाह्य कर्मकांडों का विरोध किया। सूफी संतों की तरह, कबीर ने भी प्रेम को ईश्वर प्राप्ति का मुख्य साधन माना। उनके दोहों में प्रेम और प्रेम-मार्ग की अवधारणा सूफी प्रेम-मार्ग (इश्क) से प्रभावित है। सूफी परंपरा की तरह, कबीर ने भी गुरु की महत्ता पर बल दिया और उन्हें आध्यात्मिक यात्रा का महत्वपूर्ण मार्गदर्शक माना। सूफी संतों की भांति, कबीर ने भी आत्मा-परमात्मा के मिलन की अवधारणा को अपनाया। उन्होंने वहदत-अल-वुजूद (अद्वैतवाद) के सिद्धांत को अपने दर्शन में शामिल किया, जिसमें आत्मा और परमात्मा के बीच अभेद की बात की गई है। ”कबीर के हरि में हैं, हरि मुझमे ं है” जैसे उद्गार इसी विचार को व्यक्त करते हैं। सूफी परंपरा की तरह, कबीर ने भी बाह्य आडंबरो और कर्मकांडों का विरोध किया। उन्होंने मूर्ति पूजा, रोजा, नमाज और तीर्थयात्रा जैसे धार्मिक रीति-रिवाजों की आलोचना की और आंतरिक भक्ति पर जोर दिया। उनके अनुसार, ईश्वर हर व्यक्ति के हृदय में निवास करता है, न कि मंदिरों या मस्जिदों में। सूफी संतों की तरह, कबीर ने भी मानवीय प्रेम और सद्भाव पर बल दिया। उन्होंने जाति, धर्म और वर्ग के आधार पर भेदभाव का विरोध किया और सार्वभौमिक मानवता का संदेश दिया। उनका समन्वयवादी दृष्टिकोण सूफी विचारधारा से प्रेरित था, जो सभी धर्मों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की वकालत करती है।

मुख्य शब्दः एकेश्वरवाद, सूफीवाद, वहदत-अल-वुजूद, प्रेम-मार्ग (इश्क), कर्मकांड विरोध, गुरु महत्व।


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